कोरोना महामारी मे आयुर्वेद का योगदान क्या है? (भाग-1) – डॉ. वेंकटेश जोशी।
डॉ. वेंकटेश जोशी
समाज विकास संवाद!
मुंबई,
कोरोना महामारी मे आयुर्वेद का योगदान क्या है? (भाग-1) – डॉ. वेंकटेश जोशी, आयुर्वेद का योगदान क्या है – डॉ. वेंकटेश जोशी।
कोरोना महामारी मे आयुर्वेद का योगदान क्या है?
हम कोरोना महामरी मे आयुर्वेद का योगदान इसके बारेमे चर्चा कर रहे है।
इस से पहले हम कोविड का प्रतिबंध कैसे करे इस बारे मे चर्चा की थी।
जिसमे हम लस और आर्गेनिक औषधि का उपयोग की तुलना दूध में शक़्कर की मधुरतासे की थी।
आज हम कोविड में किस तरह आयुर्वेद का योग दान हुआ इस बारेमे चर्चा करेंगे।
कोविड एक वायरल विषाणु जन्य संसर्ग हैं। पूरी दुनियामे में अलोपॅथी चिकित्सा का उपयोग होता है।
हर शास्त्र की ताकत के साथ कोई कमजोरी भी कमजोरी भी होती है! और,
वायरल इन्फेक्शन यह हमेशा अलोपथी की कमजोरी रही है।
जैसे बैक्टेरियल इन्फेक्शन की कई प्रभावी औषधि है,
लेकिन वॉयरल की कोई प्रभावी औषधि नहीं है।
कोविड19 यह इन्फेक्शन प्राण वह सिस्टम का है।
अन्य सिस्टम में वायरल इन्फेक्शन होता है। लेकिन उसकी हानि धीरे धीरे होती है।
और उसका संसर्ग सहज नहीं होता है।
इस लिए अन्य वायरल इन्फेक्शन फैलाव ( ट्रांसमिशन ) का वेग मर्यादित होता है।
लेकिन कोविड यह इन्फेक्शन प्राण वह सिस्टम का है। जिसका संक्रमण संपर्क से दस गुना बढ़ने वाला है।
और प्राण वह सिस्टम का होने से हानि तुरंत होती है। इसका हमने अनुभव किया है।
क्यूँ की हम दो मिनिट से ज्यादा ऑक्सीजन के सिवाय नहीं रह सकते है।
इस गंभीरता के कारन पूरी दुनियामे में एक दहशत होगयी है ।
और संसर्ग मर्यादित रखने के लिए लॉक डाउन जैसे उपाय किये गए।
जिसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव प्रमाण से अधिक हो गया। दुनिया के साथ अपने देश वासियों का भी परसेप्शन बदल गया।
उसमे प्रशासन सख्त हो गया। चिकित्सा पद्धति का प्रोटोकॉल केंद्रीय शासन और प्रशासन अधीन हो गया।
परिणाम स्वरुप सिर्फ अलोपथी चिकित्सा पद्धति का समावेश किया गया।
जो वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइज़ेशन से निर्धारित था। आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति का समांवेश नहीं हुआ।
आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति के संसाधन मर्यादित है।
कोरोना महामारी मे आयुर्वेद का योगदान क्या है?
अंत में माननीय पंतप्रधान मोदीजी द्वारा आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति का समावेश किया गया ।
लेकिन आयुर्वेदीय चिकित्सा पद्धति के संसाधन मर्यादित है।
जैसे मर्यादित डॉक्टरोंकी संख्या, अद्यावत रुग्णालय इत्यादि कारणों से आयर्वेद का योगदान मर्यादित हुआ।
जो परदेपे नहीं था। लेकिन हर भारतीय में आयुर्वेद ठूस ठूस के भरा है।
जिसके कारन हर व्यक्ति अपने अपने तरीकेसे इम्युनिटी बढ़ाने की कोशिश की।
इस लिए प्रगत देश कितुलना में अपने देश की कोरोना लागत की संख्या कम है।
और सौम्य और मध्यम रुग्ण घरमे ही ठीक हो गए।
कुछ रुग्न केवल आयुर्वेदीय चिकित्सा लेकर ठीक होगये।
कुछ मिक्स अलोपथी के साथ आयुर्वेदीय चिकित्सा से लाभन्वित हुए।
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