नगदी पर सर्जीकल स्ट्राइक-नरेन्द्र मोदी की काळा अर्थनीति पर सीधी वाढ!

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नगदी पर सर्जीकल स्ट्राइक-नरेन्द्र मोदी की काळा अर्थनीति पर सीधी वाढ!

नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री लगातार कैशलेस लेनदेन या कम नगदी के उपयोग पर जोर देते आ रहे हैं।

A surgical strike on cash – a direct war by Narendra Modi against Black economy

समाज विकास संवाद!
न्यू दिल्ली ,

नगदी पर सर्जीकल स्ट्राइक-नरेन्द्र मोदी की काळा अर्थनीति पर सीधी वाढ!

नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री लगातार कैशलेस लेनदेन या कम नगदी के उपयोग पर

जोर देते आ रहे हैं।

नगदी का प्रवाह कम करने की मंशा से केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सभी उपक्रमों-संस्थानों,

कंपनियों में कर्मचारियों के वेतन का भुगतान चेक या फिर डिजिटल प्रणाली से करने का

नियम अनिवार्य बनाने का फैसला किया है। नोटबंदी के बाद से प्रधानमंत्री लगातार

कैशलेस लेनदेन या कम नगदी के उपयोग पर जोर देते आ रहे हैं। सरकार का मानना है कि

इससे करों की चोरी, भ्रष्टाचार और आतंकवादी गतिविधियों में लगने वाले पैसे पर

नजर रखना आसान होगा।

यों कर्मचारियों का वेतन भुगतान चेक या बैंक खातों में सीधे हस्तातंरण के जरिए

करने संबंधी कानून 1975 में ही लागू हो गया था, पर उसमें नगदी भुगतान का प्रावधान भी

होने की वजह से कंपनियां कर चोरी के मकसद से इसका आंशिक इस्तेमाल करती रही हैं।

हालांकि जबसे वेतन और सभी प्रकार के भत्तों को कर के दायरे में लाया गया है,

ज्यादातर कंपनियां चेक या फिर बैंक खातों में सीधे हस्तांतरण कर वेतन का भुगतान करती हैं।

मगर कुछ मदों में अब भी वे नगदी भुगतान का सहारा लेती हैं।

नगदी पर सर्जीकल स्ट्राइक-नरेन्द्र मोदी की काळा अर्थनीति पर सीधी वाढ!

 

डिजिटल माध्यमों से वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू!

कर भुगतान के मामले में वेतनभोगी लोगों की कमाई पर नजर रखना सबसे आसान होता है।

इन लोगों से कर संग्रह करना भी मुश्किल नहीं होता, इसलिए कहना कठिन है कि

डिजिटल माध्यमों से वेतन भुगतान की प्रक्रिया शुरू होने से सरकार को राजस्व का कितना

लाभ होगा। इससे उन छोटे और मंझोले उद्यमों में काम करने वाले लोगों का कर

भुगतान का दायरा जरूर कुछ बढ़ सकता है,

जिन्हें कंपनियां अभी तक नगदी भुगतान करती रही हैं।

मगर नगदी भुगतान को लेकर भी मौजूदा कानून में स्पष्ट नियम है कि

अठारह हजार रुपए मासिक से कम वेतन पाने वाले कर्मचारियों को ही नगदी भुगतान

किया जा सकता है। चूंकि कम वेतन पाने वाले कर दायरे से वैसे भी बाहर होते हैं,

इसलिए कर संग्रह का दायरा बढ़ने की बहुत गुंजाइश फिलहाल नजर नहीं

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