मोदी सरकार के पास थी ताकत तब कहीं जाकर हटा पाए अनुच्छेद 370 : गृहमंत्री अमित शाह!

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मोदी सरकार के पास थी ताकत तब कहीं जाकर हटा पाए अनुच्छेद 370 : अमित शाह!

The Modi government had the power to be able to remove Article 370: Amit Shah!
समाज विकास संवाद !
नई दिल्ली।

मोदी सरकार के पास थी ताकत तब कहीं जाकर हटा पाए अनुच्छेद 370 : गृहमंत्री अमित शाह, जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था, अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना!

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को घोषणा की कि अनुच्छेद 370

(जो जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देता है) को खत्म कर दिया।

अपने संबोधन के दौरान, गृहमंत्री ने कहा कि कैसे सरकार के पास अनुच्छेद 370 को खत्म करने की शक्ति है।

दिलचस्प बात यह है कि अमित शाह ने राज्यसभा में दिए अपने बयान में यह साफ कर दिया कि

धारा अनुच्छेद 370 को हटाने में इसके तहत आने वाली धारा का ही इस्तेमाल किया गया।

सच तो ये है कि मोदी सरकार ने कुछ भी असंवैधानिक ढंग से नहीं किया,

बल्कि संविधान से ही नुक्ते खोजकर बदलाव लाया गया है।

 

गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ कर दिया!

गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में साफ कर दिया है कि वो जो कुछ कर रहे हैं उसका रास्ता सरकार ने कैसे निकाला।

उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 के अंदर ही इसका प्रावधान है।

बताया गया कि केंद्र जो फैसला करता था उसे जम्मू-कश्मीर की विधानसभा अगर माने तो ही वो लागू हुआ करता था।

अब चूंकि जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा है तो साफ है कि राष्ट्रपति के आदेश मुताबिक संसद फैसले ले सकती है।

अलग से उसे पास कराने की जरूरत बची ही नहीं। अनुच्छेद 370 को पूरी तरह खत्म नहीं किया गया,

बल्कि इस अनुच्छेद के क्लॉज 3 के तहत राष्ट्रपति को जो अधिकार मिले हैं,

उन्हीं का इस्तेमाल करते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति के माध्यम से अधिसूचना जारी की।

 

मोदी सरकार के पास थी ताकत! राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना जारी कर दी थी।

वे सभी खत्म हो जाएंगे। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अनुच्छेद 370 खत्म करने की अधिसूचना जारी कर दी थी।

इस अधिसूचना के अनुसार अब जम्मू-कश्मीर में भी भारत का संविधान लागू होगा और

अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को जो विशेष दर्जा और विशेषाधिकार मिले थे,

तो कोई वोटिंग भी नहीं। अनुच्छेद 370 का क्लॉज 3 कहता है कि राष्ट्रपति कश्मीर के संबंध में अधिसूचना जारी कर सकते हैं।

इस अधिसूचना के लिए राज्य विधानसभा की सिफारिश जरूरी होती है। चूंकि राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है,

इसलिए राष्ट्रपति ने केंद्र की अनुशंसा पर आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं।

 

अनुच्छेद 370 एक टेंपरेरी प्रावधान था!

बता दें कि अनुच्छेद 370 एक टेंपरेरी प्रावधान था और ये खुद नेहरू की सरकार भी मानती थी।

इसे एक दिन खत्म होना था और आज भी ये खत्म नहीं हुई है बल्कि उस तरफ एक कदम बढ़ाया गया है।

शाह ने राज्यसभा में कहा कि संविधान में अनुच्छेद 370 अस्थाई था,

इसका मतलब ही यह था कि इसे किसी न किसी दिन हटाया जाना था लेकिन

अभी तक किसी में राजनीतिक इच्छाशक्ति नहीं थी,

लोग वोट बैंक की राजनीति करते थे लेकिन हमें वोट बैंक की परवाह नहीं है।

जम्मू और कश्मीर में राज्य विधानसभा को पिछले साल नवंबर में निलंबित कर दिया गया था और

राज्यपाल शासन बाद में लागू किया गया था।

अब आखिरकार केंद्र सरकार ने एक बड़ा कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का ऐलान कर दिया है।

 

मोदी सरकार के पास थी ताकत! लद्दाख को अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है!

इसी के साथ जम्मू और कश्मीर राज्य को दो हिस्सों में बांट दिया गया है। जम्मू-कश्मीर एक अलग केंद्र शासित प्रदेश होगा,

जबकि लद्दाख को अलग से केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दिया गया है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 370 एक ‘अस्थायी प्रबंध’ के जरिए जम्मू और कश्मीर को एक विशेष स्वायत्ता वाला राज्य का दर्जा देता है।

भारतीय संविधान के भाग 21 के तहत जम्मू और कश्मीर को यह अस्थायी,

परिवर्ती और विशेष प्रबंध वाले राज्य का दर्जा हासिल होता है।

भारत के सभी राज्यों में लागू होने वाले कानून भी इस राज्य में लागू नहीं होते हैं।

मिसाल के तौर पर 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और

मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।

संविधान के अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के अनुसार  संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा,

विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है

लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र को राज्य सरकार का अनुमोदन चाहिए।

 

जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था।

जम्मू और कश्मीर के लिए यह प्रबंध शेख अब्दुल्ला ने वर्ष 1947 में किया था।

शेख अब्दुल्ला को राज्य का प्रधानमंत्री महाराज हरि सिंह और पंडित जवाहर लाल नेहरू ने नियुक्त किया था।

तब शेख अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 को लेकर यह दलील दी थी कि संविधान में इसका प्रबंध अस्थायी रूप में ना किया जाए।

उन्होंने राज्य के लिए कभी न टूटने वाली, ‘लोहे की तरह स्वायत्ता’ की मांग की थी, जिसे केंद्र ने ठुकरा दिया था।

इस आर्टिकल के मुताबिक रक्षा,

विदेश से जुड़े मामले, वित्त और संचार को छोडक़र बाकी सभी कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य से मंजूरी लेनी पड़ती है।

राज्य के सभी नागरिक एक अलग कानून के दायरे के अंदर रहते हैं,

जिसमें नागरिकता, संपत्ति खरीदने का अधिकार और अन्य मूलभूत अधिकार शामिल हैं।

इसी आर्टिकल के कारण देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं।

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