आक्रम को कोई बाता दे – उसका घर का पाता !
समाज विकास संवाद!
न्यू दिल्ली ,
आक्रम को कोई बाता दे – उसका घर का पाता !
सिर्फ दस साल के उम्र में आक्रम के माँ बाप ने उसे पड़ने के लिए बिहार में आपने घर से
पास वाली जिल्ले के मदरसे में भरती कराया था, लेकिन आक्रम को मदरसे का अनुशाशन
राज़ नहीं आया ! एक दिन अचानक ये किसी को बताये बिना ही रेल में सवार हो गए और
मदरसे से भाग निकला! ये था लगभग दस साल पहले की कहानी !
ट्रेन में सवार हो कर ये पहुच गया आंध्र प्रदेश के इस छोटी सी गाव में , जिस गाव का नाम है
अप्परपल्ली , ये गाव आंध्र प्रदेश में कराप्पा जिल्ला के कोडूर तालुका में है !
इसी अप्परपल्ली गाव के बहार की ढाबे में ये आज काल नौकरी करता है और ये ही ईसका पता है !
समाज विकास संवाद
हलाकि बित गए ईसका पिछले दस साल गुमनामी में, किन्तु आज काल आक्रम को आपने घर
का और घर वालो का याद सताने लगा है ! उसे याद आने लागा है माँ की आँचल की ममता ,
और पिता के प्यार भरा गुस्सा !
लेकिन क्या करे , इसे केवल आपनी माँ, पिता, भाई बहेन का नाम को छोड़ कर और
कुछ भी याद नहीं !
न तो ये आपने घर का पता याद कर पा रहा है , और न ही आपने गाव , शहर या जिल्ला का नाम!
आक्रम को कोई बाता दे – उसका घर का पाता ! इसे केवल इतना ही याद है की इसके माँ के नाम बीवी सदिया खातून!
इसे केवल इतना ही याद है की इसके माँ के नाम बीवी सदिया खातून है,
और पिता का नाम है सैअद नासीम , इसके चार भाई बहेन भी है , जिनका नाम है असलम,
आरिफ , आसिफ और बहेन का नाम है रुक्सार है !
आपनो से बिछरा ये लड़का अब आपनो को मिलना चाहता है और आपने परिजनों के याद में
एकांत में आंशु बाहाता है !
यदी किसी को भी इसी तत्थ्यो के आधार पर आक्रम के परिवार ,
परिजनों के बारे में पाता चले तो आक्रम तक पहुचने ठिकाने पर आक्रम इंतज़ार कर राहा है
बिछरे हुए आपनो से मिलने के इंतज़ार में !
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