गंगा नदी का पौराणिक मान्यता क्या है ? गंगा नदी कहा है ? पवित्र गंगा जल क्या है ?
समाज विकास संवाद!
न्यू दिल्ली,
गंगा नदी का पौराणिक मान्यता क्या है ? गंगा नदी कहा है ? क्या है देवी गंगा की महत्व ? गंगा जल क्या है ? गंगा जल पवित्र कियूं है?
भारतीय वैदिक सनातन धर्म की प्रतिक गंगा नदी भारत एवं इनके प्रतिवेशी देश बांग्लादेश की एक महत्वपूर्ण एवं प्रमुख नदी है।
हालाँकि, बांग्लादेश में यह पद्मा नदी के नाम से प्रसिद्द है, एवं भारत में बंगाल की खाड़ी में विलय के पूर्व इन्हें भागीरथी के नाम से पुकारा जाता है!
यह दुनिया की सबसे बड़ी नदी प्रणालियों में से एक है।
गंगा नदी की अंग्रेजी उच्चारण ‘गंगा’ है , जो की संस्कृत नाम ‘गंगा’ का ही अपभ्रंश है,
गंगा नदी की नाम पूरे भारत में और उन सभी क्षेत्रों में जाना जाता है जहाँ भारतीय सभ्यता फैली हुई है।
इस महान नदी की प्राकृतिक जल निकासी बेसिन प्रणाली दुनिया के सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक है;
और इसी क्षेत्र में भारतीय प्राचीन वैदिक -आर्य सभ्यता सदियों से फली-फूली है।
गंगा नदी के अलावा, इस नदी प्रणाली में कई महत्वपूर्ण सहायक नदियाँ भी शामिल हैं।
इन शाखा नदियों में यमुना, काली, करनाली, रामगंगा, गंडक और कोशी शामिल हैं।
गंगा नदी कहा है ? गंगा की उत्पत्ति कहाँ से हुई ?
भारत में गंगा नदी कहा है ? गंगा जल पवित्र कियूं है?
ये सभी हिमालय के ऊँची पहाड़ों से उत्पन्न होते हैं!
गंगा नदी की प्रधान जलस्रोत मुख्य रूप से हिमालय की गंगोत्री नमक हिमवाह के पिघलने से बनते हैं।
मूल रूप से गंगा की उत्पत्ति दो सहायक नदियों – भागीरथी और अलकनंदा से हुई थी।
भूगोल से ज्ञात होता है कि गंगा का उद्गम हिमालय के गंगोत्री हिमनद से होता है।
जो भी हो, सनातन भक्तों के लिए गंगा एक बहुत ही पवित्र नदी है।
इस नदी को देवी स्वरूप के रूप में पूजा जाता है।
गंगा को पतितपावनी पतितोद्धारिणी कहा जाता है।
पौराणिक मान्यता अनुसार गंगा नदी मानव रूप में जन्म लेने वाले पापियों को
आपने स्मरण में आने पर पाप से मुक्त करते है।
यह मान्यता युगों से चली आ रही है की,
सम्पूर्ण भक्ति भावना से गंगा नदी में स्नान करने से मनुष्य की सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।
गंगा जल क्या है ? गंगा जल पवित्र कियूं है ?
सम्पूर्ण विश्व भर में गंगा जल को पवित्र जल ज्ञान से पान किया जाता है।
गंगा जल के बिना हिंदु धर्मं में की पूजा संपन्न नहीं होती।
वैदिक मान्यता अनुरूप गंगा जल के अभाव में अन्य जल को मंत्र द्वारा शुद्ध किया जाता है एवं,
उस जल में माँ गंगा की आह्वान करके उन्हें पूजा में प्रयोग किया जाता है।
सवाल यह है कि गंगा जल को इतनि पवित्र क्यों माना जाता है ?
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस नदी की अधिष्ठात्री देवी गंगा पर्वत के राजा हिमालय की पुत्री हैं।
स्वर्ग में निवास के दौरान उन्हें नदी होने का श्राप मिला था।
इस श्राप मिलने के वाद सबसे पहले देवी गंगा ने भगवान विष्णु के चरण धोए और
आकाश गंगा ‘मंदाकिनी’ के रूप में स्वर्ग में निवास करने लागे।
देवी गंगा की धरती पर आगमन की कथा !
एक बार सूर्य वंश के राजा सगर ने धरती पर एक महान अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया।
राजा सगर द्वारा इस अश्वमेध यज्ञ का आयोजन यह सोचकर किया गया की,
यदि इस यज्ञ सफल हो जाता है, तो राजा सागर को कई दैवीय शक्तियां प्राप्त हो सकती हैं।
राजा सगर की इस उद्देश्य को जानकर भगवान इंद्र को मन में हिंसा व् द्वेष भाव प्रकट हुआ।
देवराज इंद्र ने इस यज्ञ को विफल करने के लिए राजा सागर के अश्वमेध यज्ञ के घोड़े को चुराकर
बंगोपसागर के तटवर्ती महर्षि कपिल मुनि के आश्रम में रख दिया।
अश्वमेध यज्ञ के घोड़े चोरी होने के बाद राजा सगर ने अपने पुत्रों को उस घोड़े को खोजने के लिए चारो दिशा में भेज दिया।
सगरपुत्रों को अश्वमेध की घोड़ा कपिल मुनि के आश्रम में मिला और वे महर्षि कपिल मुनी को ही चोर समझने लगे।
राजा सागर के पुत्रो ने महर्षि कपिल मुनी को घोर अपमान करने लागे,
इस अपमान के चलते तपस्वी कपिल मुनि ने अपने क्रोध से सगर के पुत्रों को भस्म कर दिया।
इस घटना से सगरराज का यज्ञ अधूरा रह गया!
कपिल मुनि के क्रोधाग्नि से जलकर सभी सगर पुत्रों की मृत्यु!
कपिल मुनि के क्रोधाग्नि से जलकर सभी सगर पुत्रों की मृत्यु हो गया,
परन्तु सागर पुत्रों की मृत शरीर ना मिलने पर इनकी अन्तोष्टि क्रिया अधुरा रह गया,
इस कारण उन सभी की आत्माओ को मुक्ति भी नहीं मिल पाया!
इसी कारन सगर के ये पुत्र मृत्यु के बाद भी असंतुष्ट रहे।
इस घटना के कई वर्ष के उपरांत राजा सगर के पौत्र अंग्शुमान अपने पिता और
अपने पूर्वजों के बारे में सब कुछ जानकर क्षमा मांगने एवं,
आपने मृत पूर्वजों की आत्माओं की मुक्ति दिलाने का उपाय जानने के लिए महर्षि कपिल मुनि के आश्रम गए।
अंग्शुमान के आतंरिक प्रार्थना सुनकर कपिल मुनि ने कहा कि यदि उनके श्मशान घाट पर
स्वर्ग में प्रवाहित माँ गंगा की दिव्य धारा को धरती में लाकर प्रवाहित किया जाए,
तो अंग्शुमान के सभी मृतों पूर्वजों के आत्मा मुक्त हो जाएंगे।
महर्षि कपिल मुनि से आत्माओं की इस मुक्ति की उपाय जानकर रजा सगर के पौत्र अंशुमान ने कठोर तपस्या प्रारंभ किया परन्तु,
न तो अंशुमान और न ही उनके पुत्र दिलीप तपस्या करके देवी गंगा को प्रसन्न कर सके।
दिलीप के पुत्र भगीरथ ने बुद्धिमानी से ब्रह्मा की तपस्या शुरू की!
इस बिफलता के बाद उनके वंशज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने बुद्धिमानी से ब्रह्मा की तपस्या शुरू की।
ब्रह्मदेव दिलीप के पुत्र भगीरथ की घोर तपस्या से संतुष्ट हुए एवं उन्हें वरदान देने के लिए प्रकट हुए।
भगीरथ ने भगवान् ब्रह्मा से देवी गंगा को धरती पर प्रवाहित करने का वरदान मांगा।
ब्रह्मा ने देवी गंगा को धरती में प्रवाहित करने का आदेश दिया,
परन्तु देवी गंगा ने ब्रह्मा जी को यह कहते हुए धरती पर आगमन के लिए सम्मत हुए की
वह सम्पूर्ण सृष्टि में भयानक बाढ़ लाकर ही पृथ्वी पर अवतरित होंगी।
देवी गंगा के मुख से निकले इस सृष्टि विनाशी शर्त को सुनकर भगीरथ ने मर्तलोक में देवी गंगा के प्रवाह को
नियंत्रित करने के लिए देवादिदेव शिव की तपस्या शुरू की।
भगीरथ के कठोर तपस्या से महादेव शिव संतुष्ट हुए और धरतीलोक पर देवी गंगा को
आपने जटा में धारण करने के लिए सम्मत हो गए।
देवी गंगा की धरती लोक पर आगमन!
देवादिदेव महादेव के सम्मति के बाद देवी गंगा की धरती लोक पर आगमन की समय आ गया!
समस्त सृष्टी के पालनहार भगवान् विष्णु के पद धौत देवी गंगा को ब्रह्मा ने अपने कमण्डलू में धारण किया।
तत्पश्च्यात ब्रह्मा ने देवी गंगा की धारा को धरती के और प्रक्षेपित किया।
प्रचंड वेगवती माता गंगा को कैलाश पर्वत के शिखर पर उपविष्ट देवादिदेव शिव ने आपने जटा पर धारण किया।
महादेव शिव के जटा पर स्थापित होने के वाद देवी गंगा की बिभिन्न धाराए एक एक कर मुक्त होने लागे।
कैलाश हिमालय के श्रंखला में से निर्गमित इन सभी जल धाराए देवी गंगा की ही प्रतिरूप है!
महदेव के जटा से इन छोटी छोटी धाराओं में निर्गमन के वाद देवी गंगा की वेग कुछ हद्द तक शांत हुआ,
इसके बाद ब्रह्मा के निर्देश अनुसार देवी गंगा राजा सगर के वंशज भगीरथ का अनुसरण किया।
भगीरथ के पूर्वजों की मुक्ति हेतु देवी गंगा ने उनके पीछे-पीछे चलकर बंगोपसागर के तट पर अवस्थित
महर्षि कपिल मुनि के आश्रम को प्लाबित कर सागर में समां गए।
गंगा सागर के बारे में प्राचीन वैदिक मान्यता!
महासागर में मिलित होने के पूर्व देवी गंगा महर्षि कपिल मुनि के आश्रम में भटकते हुए राजा सगर के पुत्रों को मुक्ति देती है।
इसीलिए धरती लोक पर इन्हें मुक्तिदायीनी एवं पापनाशिनी के नाम से पूजा जाता है!
राजा सगर के भगीरथ द्वारा देवी गंगा को पथ प्रदर्शन के कारण इन्हें धरती पर भागीरथी के नाम से भी जाना जाता है!
महर्षि कपिल के आश्रम के सम्मुख महासागर एवं देवी गंगा नदी की इस संगम स्थल गंगा सागर के नाम से जगत प्रसिद्द है!
गंगा सागर के बारे में प्राचीन वैदिक मान्यता है की –
धरती पर जन्मे सभी मनुष्य को एक बार इस स्थान पर आकर स्नान करने से परम मुक्ति प्राप्त होता है,
और इसीलिए यह जगत प्रसिद्द उक्ति है की –
सभी तीर्थ बार बार – गंगा सागर एकबार
देवी गंगा की महत्व!
सनातन धर्म की प्राचीन मान्यता अनुसार गंगा नदी मुक्ति प्रदान करने वाली!
गंगा जल श्री विष्णु का पद जल धौत जल, अर्थात गंगा जल विष्णु चरणामृत के समान, इसीलिए गंगाजल सबसे पवित्र।
देवी गंगा शंकरमौली निवासीनि, अर्थात देवादिदेव शिव के जटा में इनके निवास, इसीलिए सर्वात्रिक पवित्र।
जिस किसी पर भी जाह्नवी गंगा की कृपा है वह सभी को इनके पावन स्पर्श मात्र से ही मुक्ति मिल जाती है।
गंगा नदी में प्रबाहित गंगा जल की छूने मात्र से ही धरती पर की सभी पतित जिव को मुक्ति मिल जाते है!
मानव द्वारा गंगा नदी को प्रदूषित करने के कारण एकविंश शताब्दी में गंगा नदी विश्व की प्रदूषित नदियों में से एक है।
परन्तु, मोदी सरकार की उल्लेखनीय योगदान के कारण आज भी यह सबसे पवित्र नदी के रूप में पूजनीय है।
(गंगा की आगमन – रामायण आदिकाण्ड)
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