प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति की धरोहर माँ “शारदा पीठ” आज तक पाक अधिकृत कश्मीर में!
कब तक होंगे इस वैदिक “शारदा सिद्धपीठ” की पुनःस्थापन???
Sharada Peeth- the heritage mother of ancient Indian Vedic culture- is still in Pakistan-occupied Kashmir!
समाज विकास संवाद!
न्यू दिल्ली,
भारतीय वैदिक संस्कृति की धरोहर माँ “शारदा पीठ” आज तक पाक अधिकृत कश्मीर में! कब होंगे पुनरुद्धार, मान्यता अनुसार भगवान् ब्रह्मा जी ने सयं कृष्ण-गंगा नदी किनारे “मां शारदा मंदिर पीठ” की स्थापना किये थे!
अखंड भारत की कल्पना करे तो यह एक विशाल देश था; परन्तु जैसे जैसे समाज विकशित होने लगा वैसे वैसे समाज में
बिबिध प्रकार की विभाजन भी हुआ!
ये बिभाजन प्रत्यक्ष रूप से दिखने लगे भारत की बिभिन्न प्रान्त की भाषा में , समाज की आंचलिक बोली पर , एवं
इसीके साथ साथ सनातन भारतीय संस्कृति की वैदिक धरोहर रहे अनेक प्राचीन व् अत्यंत महत्वपूर्ण पीठ व मंदिर भी
इस देश की मुख्य धारा धरा से बिछड़ गए!
आज की पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में अत्यंत जर्जर अवस्था में अवस्थित “माँ शारदा देवी पीठ” अर्थात “शारदा पीठ”
इसी परंपरा की एक जीता जागता उदहारण है!
सन 1947 में जब भारत जब आजाद हुआ था तब तक भी जम्मू-कश्मीर का काफी क्षेत्रफल भारत के पास था!
जिसमें से चीन और पाकिस्तान ने मिलकर लगभग आधे जम्मू-कश्मीर पर आज तक अनैतिक कब्जा किया हुआ है !
जम्मू-कश्मीर के जो भाग आज स्वाधीन भारत के पास नहीं हैं उन्हें पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर अर्थात POK कहा जाता है ;
इस पाक अधिकृत कश्मीर में से गिलगित, बाल्टिस्तान, बजारत, चिल्लास, हाजीपीर आदि छेत्र पर
आज भी पाकिस्तान का सीधा शासन है!
वही मुजफ्फराबाद, मीरपुर, कोटली और छंब आदि इलाके पर आजाद कश्मीर के नाम से सांकेतिक स्वायत्त शासन हैं!
जो पूर्णत पाक के नियंत्रण में हैं।
प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति ! मान्यता अनुसार भगवान् ब्रह्मा जी ने सयं कृष्ण-गंगा नदी किनारे “मां शारदा मंदिर पीठ” की स्थापना किये थे!
अब हम बात करते है पाक अधिकृत कश्मीर के शारदा मठ की जो वर्तमान में जर्जर हालत में है!
पाक नियंत्रण वाले कश्मीर (पी.ओ.के.) के मुजफ्फराबाद जिले की सीमा के किनारे से पवित्र ”कृष्ण-गंगा नदी बहती है।
वैदिक तथ्य के अनुसार कृष्ण-गंगा नदी वही है; जिसमें समुद्र मंथन के पश्चात् शेष बचे अमृत को असुरों से छिपाकर रखा गया था;
और उसी के बाद सयं ब्रह्मा जी ने उसके किनारे मां शारदा का मंदिर बनाकर उन्हें वहां स्थापित किये थे ।
जिस दिन से मां शारदा वहां विराजमान हुईं उस दिन से ही कश्मीर सहित सम्पूर्ण वैदिक सनातन संस्कृति में
“नमस्ते शारदादेवी कश्मीरपुरवासिनी / त्वामहंप्रार्थये नित्यम विद्या दानम च देहि में” मंत्रोच्चारण के साथ ज्ञान अर्थात प्रकाश ,
विद्या अर्थात अभ्यास एवं योग अर्थात साधना की देवी शारदा अर्थात माँ सरस्वती की उपासना की प्रथा की प्रचालन हुआ!
प्राचीन भारतीय वैदिक संकृति के अनेक विद्वान व् महान ऋषि मुनि इसी क्षेत्र में जन्मे ;
जिनमे से खने वाले वाग्भट व् महर्षि काश्यप प्रमुख है , नीलमत पुराण की रचना भी इसी पीठस्थान पर हुआ ,
चरक संहिता, शिव-पुराण, कल्हण की राजतरंगिणी, सारंगदेव की संगीत रत्नकार सहित अनेक दुर्लभ एवं युगांतकारी
अद्वितीय ग्रन्थ की रचनात्मक उत्पत्ति भी ई पीठस्थान से हुआ !
उस कश्मीर में जो रामकथा लिखी गई उसमें मक्केश्वर महादेव का वर्णन सर्वप्रथम स्पष्ट रूप से आया।
शैव दार्शनिकों की लंबी परम्परा कश्मीर से ही शुरू हुई।
प्राचीन भारतीय वैदिक संस्कृति! वैदिक हिन्दू धर्म का मंडन करने निकले “शंकराचार्य” जब शारदापीठ पहुंचे थे!
शारदा तीर्थ श्रीनगर से लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर बसा है; कथित है के कश्मीर में रहने वाले हिन्दू समुदाय पैदल चलकर
मां शारदा पीठ के दर्शन करने जाया करते थे।
लोक मान्यता अनुसार हिन्दू धर्म का मंडन करने निकले “शंकराचार्य” जब शारदापीठ पहुंचे थे तो वहां उन्हें
सयं मां शारदा जी ने दर्शन देकर सनातन हिन्दू धर्म की रक्षण व् पुनःस्थापन का आशीर्वाद दिए थे!
आज भी भारत के कई हिस्सों में जब यज्ञोपवीत संस्कार होता है, इस संस्कार के समय यज्ञोपवीत धारक अर्थात बटुक को कहा जाता है;
कि तू शारदा पीठ जाकर ज्ञानार्जन कर और सांकेतिक रूप से वह बटुक शारदापीठ की दिशा में 7 कदम आगे बढ़ता है; और
फिर कुछ समय पश्चात इस आशय से 7 कदम पीछे आता है ;कि अब उसकी शिक्षा पूर्ण हो गई है; और
वह विद्वान बनकर वहां से लौट कर आ रहा है।
“मां शारदा” आज हमारे पास नहीं है!
आज दुर्भाग्य से हमारी ‘मां शारदा हमारे पास नहीं है; और हम उनके पास जाएं ऐसी कोई व्यवस्था भी नहीं है;
शायद सनातन संस्कृति की एक प्रमुख संस्कार “यज्ञोपवीत” की यह रस्म सांकेतिक ही रह जाएगी सदा के लिए।
अनेक संतों, भक्तों सहित कश्मीरी पंडितों की भारत सरकार से निरंतर मांग है कि शारदापीठ की पुनरुत्थान हो,
“शारदा पीठ” की जीर्णोद्धार एवं पुनःस्थापन के बिना भारतीय संस्कृति भी अधूरी है एवं काश्मिरियत भी अधुरा है!
जहाँ सम्पूर्ण विश्व आज वैदिक सूत्र की रहश्य की शोध में लागे है; वहीँ इस संस्कृति की प्रमुख प्राचीन पीठस्थान आज जर्जर है!
शायद आज समय आ गया है सम्पूर्ण विश्व को ये कहने का ; की “शारदा संस्कृति ही कश्मीरियत है” ।
पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों की भावना – शारदा पीठ का पुनर्निर्माण हो!
हालांकि पिछले कुछ दिनों में भारत की और से चल रहे प्रत्यक्ष संपर्क प्रणाली में “शारदा पीठ” के आसपास रहने वाले
पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों ने भी ये ही भावना को प्रकट किया है की , ये भी चाहते है-
कि शारदा पीठ का पुनर्निर्माण हो; ताकि भारत में रहने वाले माँ शारदा की भक्तों को इस पीठ का दर्शन लाभ मिल सके;
इन लोगों का ये भी मानना है की मंदिर, मस्जिद, गिरजा घर आपने आपने धर्म का आस्था के केंद्र होते है !
आज यदि भारत सरकार प्रयास करे व् प्रतिवेशी देश के साथ बातचीत क जरिये शिख समुदाय की पीठस्थान
“करतारपुर कोरिडोर” जैसे कुछ हाल निकाल सके;
तो अगुणित भारतीय सनातन धर्मी तीर्थयात्रियो को भारत की इस प्राचीन वैदिक पीठस्थान का दर्शन लाभ मिल सकेगा ;
साथ ही साथ इस क्षेत्र में रहने वाले आर्थिक रूप से अत्यंत पिछरे समुदाय को पर्यटक के रूप में बित्तिय उद्योग का भी संयोग होगा !
जिससे स्थानीय लोगो की आजीविका में सुधार होंगा!
…
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